लुप्त-प्राय जन्तु : कछुआ

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ऋचा शुक्ला

Abstract

हमारा भारत देश अपनी जैव-विविधता के लिए विश्व में एक विशिष्ट स्थान रखता है| ऊँचे-ऊँचे पर्वत, दूर तक फैले हरे-भरे मैदान, 'लहराती गंगा, सतलज, यमुना, व्यास, सरयू आदि नदियां, विशाल सागर और रेतीले मरुस्थल, ये सब एक साथ, एक देश मेँ दिखाई देते हैं तो वो है भारत देश| लेकिन वास्तविकता ये है कि आज की अपेक्षा हमारी जैक-विविधता पहले कहीं अधिक समृद्ध थी। यदि बीते कुछ वर्षो का आंकलन किया जाये तो स्पष्ट दिखाई देता है कि हमने बहुत कुछ खोया है। विकास की अंधी दौड़, बढ़ते वैश्विक तापमान, शहरीकरण एवं औद्योगीकरण आदि कुछ कारण हैं जिन्होंने हमारी अतुलनीय जैक-संपदा को पहुंचाई है जिसमें मुख्य रूप से जीव-जन्तु एवं वनस्पतियां सम्मिलित हैं|

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1.
शुक्लाऋ. लुप्त-प्राय जन्तु : कछुआ. ANSDN [Internet]. 24Jul.2013 [cited 27Aug.2025];1(01):168-70. Available from: https://www.anushandhan.in/index.php/ANSDHN/article/view/1630
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Review Article